औषधमिश्रित विविध अर्क ,उनका रोगों में उपयोग, उनमें गोमूत्र के अतिरिक्त अन्य घटक, उनके उपयोगी अंग प्रति 7 लीटर गोमूत्र में वनस्पतियों की मात्रा
औषधमिश्रित अर्को के नाम | किन विकारों में उपयोगी | वनस्पतियों के नाम | वनस्पतियों के अंग | वनस्पतियों की मात्रा |
गोमूत्र तुलसी अर्क | सर्व विकार, विशेषतः कफ विकार एवं ज्वार | तुलसी
|
तुरंत तोडे हुए पत्ते | 25 ग्राम |
गोमुत्र कालमेघ अर्क | ज्वर तथा संक्रामक विकार | कालमेघ | समूल संपूर्ण वनस्पति | 10 ग्राम |
गोमूत्र मुलेठी अर्क | खांसी | मुलेठी | मूल और तना | 25 ग्राम |
गोमूत्र पीपली अर्क | तुतलाना, हकलाना, भूलना, हृदय के परदे में छेद | पिपली | कोमल पत्ते | 50 ग्राम |
गोमूत्र अर्जुन अर्क | हृदय विकार | अर्जुन | छाल | 25 ग्राम |
गोमूत्र सर्पगंधा अर्क
(रक्तचाप) |
उच्च अथवा अल्प रक्तचाप | सर्पगंधा | मूल (जड़) | 15 ग्राम |
गोमुत्र सप्तरंगी अर्क | मधुमेह | सप्तरंगी | मूल( जड़) | 15 ग्राम |
गोमूत्र केमुक अर्क | मधुमेह | ‘केउ’ समान पौधा (इंसुलिन प्लांट) | तुरंत तोडे हुए पत्ते | 50 ग्राम |
गोमूत्र पाषाणभेद आर्क | पित्ताशय की अथवा मूत्र प्रणाली की पथरी | पाषाणभेद | मूल | 25 ग्राम |
गोमुत्र पुनर्नवा अर्क | यकृत के तथा मूत्र प्रणाली के रोग | पुनर्नवा | मूल | 25 ग्राम |
गोमूत्र पारिजात अर्क | संधिवात एवं गठिया | पारिजात (हरसिंगार) | बड़े एवं तुरंत तोडे हुए पत्ते | 35 पत्ते |
गोमुत्र मंजिष्ठा अर्क | त्वचा के और पित्त के रोग | मंजिष्ठा | मूल | 15 ग्राम |
गोमुत्र नीम अर्क | त्वचा के और पित्त के रोग | नीम | वसंत ऋतु में फूल, वर्षा ऋतु में तुरंत तोडे हुए पत्ते, अन्य ऋतुओं में मूल अथवा तने की छाल | 50 ग्राम |
गोमूत्र शतावरी अर्क | गर्भाशय के रोग, छोटे बच्चों के रोग, याद न रहना | शतावरी | छिलका रहित कंद | 30 ग्राम |
नंदी मुत्र अर्क | नपुंसकता और बांझपन | सहजन | फली | 50 ग्राम |
नंदी मुत्र बिल्व अर्क | नपुंसकता, मूत्रतंत्र अथवा प्रजननतंत्र के कर्करोग | बेल | तुरंत तोडे हुए पत्ते | 50 ग्राम |
गोमुत्र सर्पगंधा अर्क | प्रत्येक प्रकार का कर्करोग (कैंसर) | सर्पगंधा | मूल | 15 ग्राम |
गोमुत्र गुडूची अर्क | रोग प्रतिरोधी शक्ति की न्यूनता | गिलोय | इस लता के टुकडे | 25 ग्राम |
घटक पदार्थ और उनकी मात्रा
- गोमुत्र : 7 लीटर
- जीरा : 5 ग्राम
- सौंफ : 5 ग्राम
- औषधि वनस्पति इन की मात्रा उक्त सारणी में दी गई है ।
बनाने की विधि
औषधिमिश्रित गोमूत्र अर्क बनाने की विधि गोमुत्र चंद्रमा अर्क के समान ही है । इससे संबंधित कुछ अतिरिक्त सूत्र आगे दिए अनुसार हैं ।
- ‘गोमूत्र पीपल अर्क’, ‘गोमूत्र अर्जुन अर्क’, ‘गोमुत्र सर्पगंधा अर्क (रक्तचाप)’ आदि हृदय एवं मस्तिष्क से संबंधित रोगों पर उपयुक्त अर्क के लिए दूध देने वाली गायों का मूत्र लें । दूध देने वाली गाय के मूत्र में ‘लैक्टोज’ नामक शर्करा होती है । यह हृदय एवं मस्तिष्क के विकारों में लाभदायक होती है ।
- ‘नंदी मूत्र अर्क’ और ‘नंदी मूत्र बिल्व अर्क’ आदि के लिए नंदी का ही मूत्र लें ।
- अन्य सर्व अर्कों के लिए दूध देने वाली अथवा दूध न देने वाली गाय अथवा नंदी में से किसी का भी मूत्र ले सकते हैं ।
- इन अर्कों के लिए संग्रहित किए हुए पुराने गोमूत्र भी उपयोग कर सकते हैं । गोमूत्र जितना पुराना होगा, उतना उसमें अमोनिया अधिक होता है ।
- तुलसी, कालमेघ, पीपल, ‘केउ’ समान वनस्पति का पौधा (इंसुलिन प्लांट), हरसिंगार, नीम, शतावरी, सहजन बेल, गिलोय आदि औषधियां सदैव ताजी लें । यह वनस्पतियां भारत में सर्वत्र मिलती हैं । अपने आसपास के क्षेत्र से ये औषधियां संभवतः स्वयं ही एकत्रित करें ।
- अन्य वनस्पतियां अर्थात मुलैठी, अर्जुन, सर्पगंधा, सतरंगी, पाषाणभेद, पुनर्नवा और मंजिष्ठा यदि संभव हो, तो ताजी ही लें । ताजी वनस्पतियां न मिलने पर औषधियों की दुकान से इन औषधियों का जौकूट (मोटा) चूर्ण क्रय करें ।
- औषधिमिश्रित अर्क बनाने के लिए जो वनस्पति आवश्यक हो, उस वनस्पति का उपयुक्त अंग पर्याप्त मात्रा में लें । यदि गोमुत्र 7 लीटर हो, तो औषधि वनस्पति की मात्रा कितनी होनी चाहिए ? यह उक्त सारणी में दिया गया है।
- वनस्पतियां खलबत्ते में कूटकर तौल लें और सूती वस्त्र में बांधकर जीरा और सौफं की पोटली सहित गोमूत्र में छोडें ।
- अर्क बनाने की प्रक्रिया पूर्ण होने पर कपड़े में बंधी हुई औषधि वनस्पतियां परात में एकत्रित कर धूप में सुखा लें । इनका उपयोग पित्तशामक चूर्ण बनाने के लिए होता है ।