sdasad
    • 28 JUN 18
    क्या डर के आगे सच मे जीत है ?

    डर… एक ऐसा शब्द जो हमें आंतरिक रूप से इतना निर्बल कर देता है की किसी भी कार्य को करने से पहले हम इतने भयभीत होते है की या तो उस कार्य को करने की हिम्मत नही जुटा पाते ओर या उस कार्य में असफल हो जाते है |

    सन 1999 की बात है, हमारी दो दुकान हुआ करती थी, अच्छी चलती थी | उस दिन मेरे पिताजी बाज़ार दुकान का सामान लेने गए थे, रात हो चली थी, 11 बज रहे थे, फोन की सुविधा नही थी, पिताजी की प्रतीक्षा करते-२ दो बज गए, दरवाजा बजा, खोला तो पिताजी लहूलुहान…. पिताजी की ट्रक से दुर्घटना हुई थी |

    डर लगा… अब क्या होगा…??

    अब मेरी दसवी की परीक्षा चल रही थी… ओर दुकान की सारी ज़िम्मेदारी मेरे उपर… पर डरा नही… दोनो दुकान भी संभाली, परीक्षा भी दी ओर पास भी हुआ…

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    सन 2003 में Engineering मे प्रवेश लिया, सब्जेक्ट मिला PI … पर मज़ा नही आ रहा था… जैसे-तैसे धक्का मारकर एक वर्ष निकाला ओर छोड़ दी Engineering…

    पढ़ें- बंद कर दो इन गौशालाओं को… नही बचेगी गाय !

    डर लगा… अब क्या होगा…??

    2004… खाली फोकट बैठा रहा… पिताजी बोले दुकान कर ले… बोला नही करूँगा… खुद कुछ करके दिखाउँगा… दोनो दुकाने बंद करवा दी… अब करता क्या खाक…. पढ़ाई तो छोड़ दी थी…

    डर लगा… अब क्या होगा…??

    2003 मे ही एक लड़की मिली जिससे प्रेम हो गया… उसके घरवाले विवाह को तैयार थे… पर एक शर्त रख दी… लड़का 50000 रुपया महीना कमाना चाहिए… 🙁 50000 रुपया महीना…. ओर वो भी 2005 मे…?? अब अपन भी जिगर वाले थे… बोल दिया… बस 4 साल… फिर मिलते है…

    डर लगा… अब क्या होगा…??

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    अब हुआ जिंदगी का असली खेल चालू… कैसे…??

    2005 में मैने वेबसाइट डिज़ाइनिंग का कोर्स किया… ओर 16-1-2006 को 5000 मासिक मे मेरी एक MNC मे नौकरी लग गई… जहाँ मुझे 2-5 घंटे खाली मिलते थे… बस बाज़ी अपने हाथ थी… फ्री इंटरनेट… 5000 रुपये ओर खाली टाइम… | धड़ाधड़ अमेरिका में इंटरनेट पर कम देखना चालू किया… काम मिला… ओर इतना मिला की मार्च 2007 में अपन मे अपना ऑफीस ले डाला… 07-07-2007 को नौकरी छोड़कर अपन बैठ गए अपने ऑफीस मे… क्या 2007 मे 17000 की नौकरी छोड़ डाली…??

    डर लगा… अब क्या होगा…??

    भाग्य ने पलटी खाई… एक के बाद एक धड़ाधड़ प्रॉजेक्ट मिलने लगे…. 1 से 25 कर्मचारी हो गए… सर्वानंद ही सर्वानंद… 250000 मासिक तो हम पगार देते थे… 50000 मासिक का लक्ष्य बहुत पीछे छूट चुका था…

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    लड़की के घरवालो से मिला… उन्हे तो विश्वास ही नही हुआ… ये लोथड़ू… ओर 50000 महीना…?? उन्होने क्रॉस चेक किया… सब सत्य था… विवाह हुआ…

    डर के आगे जीत मिली… अब आगे सब कुछ सरल था… अमूल माचो… बड़े आराम से…??

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    पर पता नही क्यो ये उपर वाले का अपन से विशेष प्रेम है… डर अपना पीछा नही छोड़ता कभी…

    सन 2009… अमेरिका मे मंदी, काम कम हो गया… समय मिला… तो बचपन में देखा एक चेहरा आँखो के सामने घूमने लगा… फोकट समय था… उसे नेट पर ढूँढा… तो वो आदमी निकला राजीव दीक्षित… लोचे पे लोचा… हो गया बेड़ा गर्क… उनके सारे वीडियो देख डाले… महाराज ने नींद उड़ा दी मेरी…. 6 माह… नींद नही आई ठीक से…

    निर्णय हुआ की अब आईटी को बंद कर धर्म के मार्ग पर चलते हुए जीवनयापन करेंगे…?? पर कैसे…?? ना कुछ योजना… ना ज्ञान ओर ना कोई ग्रामीण आधार….

    अब फिर से डर लगा… अब क्या होगा…??

    लगभग 4 वर्ष बिना कमाई के बिताए… केवल धर्म को समझने मे… सही सुना… 2 बच्चो के साथ… बिना कमाई… 4 वर्ष 

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    2014 पंचगव्य मे प्रवेश…बिना आधार…

    ओर आज… गव्यशाला…?? आज भी अनेक चुनौतियाँ… आज भी जूझता हूँ… दिन-रात… बाज़ार मे बात करने के लिए भी पैसा चाहिए… पर मैं आज भी उसके लिए इतना पागल नही हूँ… ना आज तक मेरे उत्पादों पर कोई ब्रांड है ओर ना ही उनकी कोई मार्केटिंग ही की है… क्या समझे… ?? कोई मार्केटिंग नही…?? मुझे मेरे राम पर भरोसा है… वो आवश्यकता से अधिक ही देता है |

    अब ऐसे मे प्रतिदिन जब अनेक लोग यह कहते है… की भाई मेरा अर्क आप खरीद लो…. 100 रुपया लीटर दे देना… बाज़ार मे खरीदने वाला कोई नही है… आप केवल बाते करते है… कोई खरीदने वाला नही है….  जब कोई खरीदता नही है तो आप सीखाते क्यो है…?? स्वदेशी ओर गौरक्षा की बात बैमानी है |

    तो मेरे मन मे आता है की क्या सच मे भारत को ऐसे डरपोक ओर बोझिल युवाओं की आवश्यकता है जो भारत के लिए अपने जीवन के 6 माह भी दाव पर ना लगा सके ? क्या इन्ही लोगो से आप भारत के भविष्य को बदलने की अपेक्षा लगाए बैठे है..?? तो भूल जाइए… ये युवा… जो स्वयं अपने लिए कोई रिस्क नही उठा सकते आप इनसे देश ओर गाय के लिए अपेक्षा कर रहे है..??

    गुलामी कोई शारीरिक नही… बल्कि मानसिक अवस्था है… अब आप ही सोचे… एक व्यक्ति प्रतिदिन एक रोगी देखकर… प्रतिमाह 20 से 30 हज़ार मासिक कमा सकता है तो ये बावले क्यो अपनी औषधियों को थोक में कौड़ियों के भाव मे देना चाहते है..??

    पढ़ें- राजीव भाई के भक्त ओर राष्ट्ररक्षकों के लिए आवश्यक है विचारधारा की स्पष्टता

    नही जानते…??

    अरे भाई क्योंकि इन्हे लगता है की ये थोक मे बेचकर ज़्यादा कमा लेंगे… बस यही इनकी गुलामी है… इसके आगे ये सोचना ही नही चाहते… बाज़ार खुला है… रोगी भरे पड़े है… पर इन्हे तो थोक मे बेचना है…. ओर उसके लिए ये दिन-रात किसी का दरवाज़ा खटखटा रहे है… कदापि कोई आएगा ओर प्रतिदिन इनका 8-10 लीटर गौमूत्र अर्क 100 रुपया लीटर के हिसाब से ले जाएगा…

    मेरा ऐसे युवाओं से कहना है की भाई तुम रहण द्यो…. तुमसे ना हो पाएगा….

    यदि देशी गाय से 1 लाख रुपया महीना कमाने के 9 सूत्र, बाज़ार मे अपने उत्पाद बेचने के 7 सूत्र, इतने यूट्यूब वीडियो के पश्चात भी तुम्हारे अंदर विश्वास नही जाग पाया… तो रहण द्यो भाई… इसे सोने ही दो…. क्योंकि मुर्दे को जगाने का कोई लाभ नही…

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  • Posted by RAJU SWARNAKAR on June 30, 2018, 3:24 pm

    WANT TO KNOW IN DETAILS.

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  • Posted by Dhiraj singh on June 28, 2018, 7:47 pm

    दूरदराज के क्षेत्रों पंचगव्य का महत्त्व कैसे समझाया जाए लोगों को?
    पंचगव्यों के निर्माण में प्रयोग होने वाले कच्ची सामग्री दूरस्थ क्षेत्रों में उपलब्ध कैसे होगी?

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