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गोमूत्र चंद्रमा अर्क (सर्व विकार)

घटक पदार्थ और उनकी मात्रा

  1. नया गोमुत्र 7 लीटर
  2. जीरा 5 ग्राम
  3. सौंफ 5 ग्राम

बनाने की विधि

  1. अर्क बनाने के लिए गोमूत्र शास्त्रानुसार प्राप्त किया हुआ होना चाहिए ।
  2. गोमूत्र चंद्रमा अर्क बनाने के लिए सदैव नए गोमूत्र का उपयोग करें परंतु विविध औषधीमिश्रीत अर्क बनाने के लिए उत्तम प्रकार के प्लास्टिक के पात्र में रखे पुराने गौमूत्र का भी उपयोग किया जा सकता है ।
  3. अर्क यंत्र का बाष्पक 10 लीटर आयतन का हो, तो 7 लीटर (लगभग दो तिहाई) नया गोमूत्र लें।
  4. स्वच्छ सूती कपड़े की चार परतें बना लें । इससे गोमूत्र छानकर अर्कयंत्र में भरें ।
  5. अर्कयंत्र का ढक्कन खुला रखकर गोमूत्र को उबाल आने तक बड़ी आंच पर तपाएं ।
  6. गोमुत्र जब उबलने लगे, तब 5 ग्राम जीरा और 5 ग्राम सौंफ की एक सूती कपड़े में पोटली बनाकर गोमुत्र में छोड़ दें ।
  7. अर्कयंत्र की जिस नली से अर्क की भाप निकलती है, उसके नीचे लगभग एक लीटर क्षमता की कांच की बरनी रखें ।
  8. अर्कयंत्र की नली में पानी का प्रवाह आरंभ करें ।
  9. इसके पश्चात अर्क यंत्र का ढक्कन कसकर लगा दें ।
  10. अब आंच इतनी रखें की आर्कयंत्र की नली से बाष्प के स्थान पर उसका पानी निकले और कांच की बरनी में इकट्टा होता रहे ।
  11. गोमूत्र अर्क बडी आंच पर बनाने से उसे आवश्यक औषधीय गुण धर्म नहीं आते । इसी प्रकार, आंच अत्यंत मंद रखने पर अर्क नहीं बनता । अतः गोमूत्र अर्क मध्यम आंच पर बनाएं । आंच की तीव्रता इतनी होनी चाहिए कि 1 घंटे में 1 लीटर अर्क बन सके ।
  12. आरंभिक लगभग 10% तक अर्क श्वेत रंग का और स्वाद में अत्यंत चपरा होता है ।
  13. इसमें अमोनिया वायु अधिक होती है इसलिए पीते समय मुंह और गले में जलन होती है । यह अर्क न पीएं । इसे निकालकर अलग रखें । 7 लीटर गोमूत्र लेने पर यह अर्क 300 से 700 मिलीलीटर मिलता है । यह मात्रा चारों ओर ऋतु के अनुसार न्यूनाधिक होती है । इसका उपयोग खेती में कीटनाशक के रूप में कर सकते हैं ।
  14. आरंभिक 10% यहां अर्क एकत्र हो जाने पर उसे दूसरे कांच के बर्तन में लेकर उसका रंग देखें और स्वाद चखें ।
  15. श्वेत रंग का अर्क आना थम जाने पर तथा उसकी तीव्रता सहजता से पीया जा सके, इतनी होने पर अर्कयंत्र की नली के नीचे पहले से रखी कांच की बरनी हटाकर उसके स्थान पर चीनीमिट्टी का अथवा मिट्टी का 4 लीटर क्षमता का बर्तन रखें ।
  16. बर्तन में अर्क की बूंदे गिरती रहें, इतना भाग खुला रखकर शेष ढक दें ।
  17. अमोनियायुक्त अर्क निकल जाने पर उसके पश्चात का 40% अर्क अत्यंत औषधीय होता है ।
  18. गोमुत्र यदि दिनभर वन में चलने वाली गाय का हो, तो 50% तक औषधिय अर्क मिलता है ।
  19. उसके पश्चात मिलने वाले अर्क में औषधीय गुणधर्म बहुत अल्प रहते हैं । इसलिए 3.4 लीटर अर्क मिल जाने पर अर्कयंत्र के नीचे की आंच बुझा दें ।
  20. इस गोमूत्र अर्क को स्वच्छ सूती कपड़े की चार परतों से छान लें और उस पर सूर्य प्रकाश न पडे, ऐसे गहरे काले रंग की बोतल में भरकर रख दें ।
  21. यंत्र के बाष्पक में बचे हुए गाढ़े गोमूत्र को ‘गोमुत्र क्षार’ कहते है । इसका उपयोग दूसरे उत्पाद बनाने में किया जाता है । यह गोमुत्र क्षार अच्छी गुणवत्ता के प्लास्टिक के पात्र में भरकर रखें ।
  22. पोटली के जीरे और सौंफ को एक परात में फैलाकर धूप में अच्छे से सुखा लें । इनका उपयोग ‘गव्य पित्तशामक’ चूर्ण बनाने में होता है ।

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